आवश्यक सूचना:-  न्यूज़ पोर्टल वेबसाइट बनवाने के लिय इस नंबर 9411066100 पर संपर्क करें और बनवाएँ आपना मनपसंद वेबसाइट कई फीचर के साथ पहले डेमो देखें फिर बनवाएँ 

कम अंक आने पर भी बच्चे से करें सौहार्दपूर्ण व्यवहार: डॉ मनोज तिवारी

 प्रस्तुत पत्र के साथ(1-  कम अंक आने पर भी बच्चे से करें सौहार्दपूर्ण व्यवहार: डॉ मनोज तिवारी 2- बहुत हुआ पृथ्वी का दोहन: अब तो उठो जागो ,आंखें खोलो)   लेख आपको प्रेषित कर निवेदन है कि इसे अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करने की कृपा करें। विश्वास है एवीके न्यूज सर्विस को आप का सहयोग मिलता रहेगा। लेख के संक्षिप्तीकरण के लिये आप स्वतंत्र है। प्रकाशित अंक की एक प्रति ईमेल या व्हाट्सएप नम्बर   पर भेजवाने की कृपा करें। एवी के न्यूज सर्विस की सामग्री वेबसाइट  पर उपलब्ध है।


धन्यवाद

 1- 

कम अंक आने पर भी बच्चे से करें सौहार्दपूर्ण व्यवहार: डॉ मनोज तिवारी

 

डॉ मनोज कुमार तिवारी 

वरिष्ठ परामर्शदाता 

एआरटी सेंटरएस एस हॉस्पिटलआईएमएसबीएचयूवाराणसी

 

आने वाले कुछ सप्ताह के अंदर सभी बोर्डो के हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट के परीक्षा परिणामों की घोषणा होने वाली है जिसको लेकर विद्यार्थी के साथ-साथ उनके अभिभावकों में भी उल्लास एवं बेचैनी देखी जा रही है हर वर्ष बोर्ड के परीक्षा परिणाम आने के बाद अनेक विद्यार्थी कम अंक आने पर आत्मघाती व्यवहार करते हैं जिससे अनेक विद्यार्थी अपना जीवन खो देते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार सन् 2021 में 864 छात्रों ने परीक्षा में विफलता के कारण मौत को गले लगा लिया था। परीक्षा में कम अंक मिलने पर कुछ बच्चे आत्महत्या का मार्ग चुनते हैंक्योंकि उन्हें लगता है कि कम अंकों के कारण उनका भविष्य बर्बाद हो गया।

किसी भी परीक्षा का परिणाम विद्यार्थी के जीवन से अधिक महत्वपूर्ण नहीं हो सकता है। परीक्षा का परिणाम अपेक्षित न होने का यह अभिप्राय नहीं है कि व्यक्ति अपने जीवन में असफल हो गयाअनेक बार यह देखा गया है कि परीक्षा में अनपेक्षित परिणाम लाने वाले व्यक्ति भी अपने जीवन में कठिन परिश्रम एवं धैर्य के माध्यम से उच्च सफलता अर्जित करते हैं इसलिए हर परिस्थिति में विद्यार्थियों को अपने धैर्य को बनाए रखना चाहिए। कुछ माता-पिता अपने बच्चों की क्षमता व अभिरुचि को सही ढंग से जाने बिना ही बच्चे से ज्यादा अपेक्षाएं रखते हैं तथा परीक्षा के समय व उसके बाद भी बच्चों के मनोदशा को जानने का प्रयास नहीं करते जिसके कारण कुछ बच्चे अप्रिय कदम उठाने के लिए मजबूर होते हैं।

 

विद्यार्थियों के लिए सुझाव:-

 अपेक्षित परिणाम न होने पर भी धैर्य बनाए रखें 

मन पर नकारात्मक विचारों को हावी न होने दें 

अपने परीक्षा परिणाम की अनावश्यक रूप दूसरे से तुलना न करें 

परीक्षा परिणाम को लेकर प्रतिस्पर्धा न करें 

परीक्षा परिणाम को लेकर व्देष की भावना न रखें 

मन में नकारात्मक विचार आने पर भाई-बहनमित्रोंमाता-पिता एवं शिक्षक से बातचीत करें।

अपने अच्छे परीक्षा परिणाम को याद करें 

परीक्षा के प्राप्तांक को ही जीवन की सफलता का आधार न माने।

मन में धनात्मक विचार रखें 

जीवन के लिए तार्किक ढंग से लक्ष्य निर्धारित करें 

*अभिभावकों के लिए सुझाव:-*

घर में परीक्षा परिणाम को लेकर नकारात्मक वातावरण न बनाएं 

कम अंक के लिए बच्चे को ताने न दें।

कम अंक के लिए बच्चे को दंडित न करें।

बच्चे में धैर्य व आत्मविश्वास जगाएं 

अपने बच्चे की अतार्किक ढंग से दूसरे बच्चों से तुलना न करें 

बच्चे को समझाएं की यह रिजल्ट केवल इस परीक्षा का परिणाम है न कि उसके जीवन का।

रिजल्ट आने के बाद यदि बच्चे के व्यवहार में बड़ा परिवर्तन दिखे तो  उससे सहज ढ़ंग से बातचीत करके उसके मन की स्थिति को जानने का प्रयास करें।

यदि बच्चे के मन में बार-बार नकारात्मक विचार या आत्महत्या के विचार आए तो उसे अकेला न छोड़े और प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक से सलाह लें।

 

 *शिक्षकों के लिए सुझाव:-*

परीक्षा के प्राप्तांको के बजाय विद्यार्थी के ज्ञान एवं समझ को महत्व दें।

बच्चों में अंकों के लिए प्रतिस्पर्धा का वातावरण विकसित न होने दें।

कम अंकों के लिए कक्षा में विद्यार्थियों को शर्मिंदा या अपमानित न करें

यदि विद्यार्थियों के मन में परीक्षा परिणाम को लेकर नकारात्मक विचार आतें हो तो उसे दूर करने का प्रयास करें।

विद्यार्थियों में सकारात्मक विचार एवं आत्मविश्वास बनाए रखने का प्रयास करें

 

*मीडिया के लिए सुझाव:-*

रिजल्ट के प्रति समाज में सकारात्मक वातावरण विकसित करने का प्रयास करें ताकि यदि किसी विद्यार्थी का परिणाम अपेक्षित न आए तो भी वह धैर्य पूर्वक आगे के शिक्षा के लिए तैयार हो सके। ऐसे व्यक्तियों का साक्षात्कार प्रकाशित करना चाहिए जिनका बोर्ड का रिजल्ट औसत होने के बाद भी आज वे जीवन में उच्च सफलता अर्जित किये हैं।

विद्यार्थियों को मानसिक दबाव से बाहर निकालने में अभिभावकोंभाई-बहनमित्र मण्डलीपडोसियोंरिश्तेदारों व शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण होती हैजो उन्हें सहानुभूतिपूर्वक समझाएं कि किसी भी परीक्षा के परिणाम से उनके जीवन का निर्धारण नहीं होता है। व्यक्ति के जीवन ऐसा हैजिसे दोबारा नहीं पाया जा सकता है। विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे सकारात्मक सोच से मेहनत करके सफलता की बुलंदियों को छू सकते हैं। विद्यार्थियों को परीक्षा परिणाम के नकारात्मक प्रभाव से बचने की जिम्मेदारी समाज के प्रत्येक वर्ग की इसलिए इसके लिए समेकित रूप से सभी को प्रयास करने की आवश्यकता है ताकि किसी भी विद्यार्थी को अपने बहुमूल्य जीवन से हाथ न धोना पड़े।

2-

22 अप्रैल अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी दिवस पर विशेष

 

बहुत हुआ पृथ्वी का दोहन: अब तो उठो जागो ,आंखें खोलो

                 -- सुरेश सिंह बैस

_________________________

  आज पृथ्वी पर पर्यावरण प्रदूषण इतनी तीव्र गति से हो रहा हैकि वर्तमान में इसका कोई भी कोना चाहे वह ध्रुव प्रदेश हो या समुद्री तल हो या अंतरिक्ष क्षेत्र सहित सभी जगहों पर मानव ने अपरिमित गंदगी फैला कर पृथ्वी की युगों से अनवरत चली आ रही व्यवस्था में खलल उत्पन्न कर दिया है। अब तो यह स्थिति है कि हमारी पूरी पृथ्वी का ही भविष्य दांव पर लग गया है। पृथ्वी पर इतना ज्यादा मनुष्य ने लालच और शक्ति की चाहत में हर प्रकार से लूट मचाई हुई है। जिसका परिणाम है कि आज पृथ्वी बंजर हो रही है। समुद्र गंदे हो गए हैं। जल थल नभ सभी प्रदूषित हो गए हैं। विश्व का पर्यावरण पूरी तरह से खराब हो चुका है।

मनुष्य पृथ्वी पर जन्म लेता है। उसके मिट्टी में खेल कूद कर बड़ा होता है। पृथ्वी उसके आहार की व्यवस्था अपने वनस्पतियों से करती है। एवं अमृततुल्य शीतल जल अपना हृदय निचोड़ कर देती है। प्रतिपल जीवन के लिए अति आवश्यक प्राणवायु का संजीवनी भी प्रदान करती चली आ रही है। अपने पूरे जीवन भर मनुष्य पृथ्वी से केवल और केवल लेता ही रहता है ।वापस उसे कुछ भी नहीं देता ।आखिर में अंततः जीवन के अंत में उसी की गोद में ही मृत्यु हो जाने पर चिरनिंद्रा का आश्रय भी पाता है। ऐसी जगत माता पृथ्वी के प्रति कर्तव्यों और दायित्वों को भूलकर मनुष्य छुद्र स्वार्थों के वशीभूत होकर वह अपनी मां के जीवन को ही खत्म करने पर तुल गया है। यह जानते हुए भी कि मां ही नहीं रहेगी तो उस पर हर कार्यों के लिए आश्रित पुत्र यानी मानव का तो नामोनिशान ही नहीं रह जाएगा। उसके दोषों का दुष्परिणाम अन्य जीव जंतु व जानवरों को भी निर्दोष होते हुए भी भुगतना पड़ेगा। यह सब जानते हुए भी मनुष्य पृथ्वी को विनाश के कगार पर धकेले चला जा रहा है।

पृथ्वी पर आज की तारीख में  कोई खतरा सबसे ज्यादा है तो वह है स्वयं मनुष्यइसके बाद पर्यावरण प्रदूषण तथा कमजोर होती जा रही जीवनदायिनी ओजोन की परतों से है। जो कि कई जगहों पर अब "ओजोन होल" का रूप ले चुका है। ओजोन की परत के घटने के कुप्रभाव का अंदाज सिर्फ इससे ही लगाया जा सकता है कि पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सीधे पहुंचकर जीव जंतुओं के लिए अत्यधिक हानिकारक साबित होगी। जीव जंतुओं में कई प्रकार की बीमारियां फैल जाएंगी वहीं वनस्पति जगत में भी विकृतियां पैदा हो जाएंगी। कई शैवाल और प्लैक्टन आदि नष्ट हो जाएंगे। वही अंधाधुंध वनस्पतियों का नाश करना भी मनुष्य नहीं छोड़ रहा है। आज जंगल के जंगल खत्म होते चले जा रहे हैं। पेड़ पौधे एवं वनस्पतियों का संसार दिन ब दिन छोटा होता चला जा रहा है । यह भी पृथ्वी और पर्यावरण के लिए अत्यधिक नुकसानदायक हो रहा है। पृथ्वी पर ऑक्सीजन की प्रतिशत मात्रा बीस प्रतिशत से भी कम होने लगी है ।और अनुपयोगी कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में बढ़ोतरी पर बढ़ोतरी होती जा रही है। फलत: पृथ्वी का  तापमान  आसामान्य रूप से काफी गर्म हो रहा है। पृथ्वी के असामान्य रूप से गर्म होने की स्थिति को हम ग्रीनहाउस इफेक्ट अथवा ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं।

ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी के ध्रुवों का बर्फ पिघल कर समुद्र स्तर को बढ़ा रहा है । और कई तटीय इलाकों के  प्रदेशों को लीलता चला जा रहा है। भू वैज्ञानिकों ने तो यहां तक कह दिया है कि आगामी पचास वर्षों के अंदर ही भारत के कई तटीय इलाके समुद्र में डूब जाएंगे। साथ ही दुनिया के कई देश उदाहरणार्थ मालदीव्सश्री लंका कैरेबियन देश सहित कई छोटे छोटे द्वीप भी समुद्र के अंदर समा जाएंगे। अनेक छोटे छोटे द्वीपों और समुद्र किनारे के देशों को ग्लोबल वार्मिंग जलमग्न कर देगा।

    इन्हें अगर बचाना है तो हमें मुख्य रूप से वाहनों और कार्बन डाइऑक्साइडमोनो ऑक्साइड का उत्सर्जन करने वाले इलेक्ट्रॉनिक साधनों जैसे रेफ्रिजरेटरएयर कंडीशनरफोटोकॉपी मशीनएक्सरे मशीनों के प्रयोग पर प्रभावी अंकुश लगाना होगा। क्योंकि पृथ्वी इन वजहों से भी प्रदूषित हो रही है। इनके द्वारा हानिकारक गैसों के उत्सर्जन से पृथ्वी की ओजोन परतें कमजोर होती चली जा रही हैं। पृथ्वी की सुरक्षा के लिए इन ओजोन परतों  को बचाए रखना अत्यंत आवश्यक है ।

सड़कों पर धुआं तथा धूल उड़ाती शोर करती गाड़ियांप्रतिदिन स्थापित होती फैक्ट्रियां और तेजी से बढ़ती जनसंख्याउनके रहने के लिए पृथ्वी के सीने पर सैकड़ों गुना रफ्तार से फैलती कंक्रीट के जंगल ने पृथ्वी को बुरी तरह से घायल कर दिया है !आज पृथ्वी इन के बोझ से कराह  रही है। सिसक रही है ।और ऐसी विषम परिस्थितियों के  लिए सबसे ज्यादा दोषी स्वयं मनुष्य है।

 मनुष्य ने विकास के नाम पर पृथ्वी के पुराने स्वरूप को ही बदल डाला है। जीवन उपयोगी वनों को नष्ट कर डाला है। एवं समुद्र में करोड़ों टन कचरा पहुंचाकर परमाणु विस्फोट और नदियों के अमृत रूपी पेयजल के निरंतर प्रदूषित करने की क्रिया ने पृथ्वी को एक बारूदी गोले में तब्दील कर दिया है। तभी तो वैज्ञानिकों का यह अनुमान है कि सन् 2040 से प्रारंभ होकर सन् 2080 तक पृथ्वी पर महाविनाश होना अवश्यंभावी नजर आता है।

   पृथ्वी पर विकास के लिए अंधाधुन निर्माण करने के कारण जो हवा ,पानीठंडगर्मी ,खनिज तत्वों के निर्माण हेतु पृथ्वी के गर्भ में जानी चाहिएवह अब स्थाई निर्माण कार्यो के कारण पृथ्वी से बाहर ही रह जा रही है ।जिससे हो यह रहा है कि पृथ्वी का उपजाऊ  तत्व नष्ट होते चला जा रहा है |वही पानीहवा ,ठंडी ,गर्मी निर्धारित चक्र में पृथ्वी के अंदर न जाने से भी  असामान्यता पैदा हो रही है।

     जीवन के लिए आवश्यक वन जिनसे सांस लेने के लिए हवाखाने के लिए फल फूल ,अन्नसब्जी ,पहनने के लिए परिधानमकान बनाने के लिए लकड़ीखाना पकाने के लिए इंधनऔषधियां आदि अनेक उपहार प्राप्त होते हैं। उनका भी धीरे-धीरे विनाश कर दिया गया है। पहाड़ों के पीठ नंगे कर दिए गए हैं। पृथ्वी का गर्भ काटकर कोयला ,खनिज आदि निकाल लिए गए हैं। फल स्वरुप बड़े पैमाने पर बनजर भूमिकटाव ,बाढ़ ,सूखा ,भूकंपप्राकृतिक आपदा का सामना आए दिन करना पड़ रहा है।

    हमें अब तो सचेत होना होगा अब नहीं जागे तो कब जागेंगे। अब तो अनिवार्य रूप से मनुष्य को जागना होगा ।सचेत होना होगा। सतर्क होना होगा। और अपने अनैतिक लोभ और ताकत के प्रदर्शन में हर हाल में अंकुश लगाना होगा। मां पृथ्वी को भी सहनशीलता और स्नेह बहुत प्रिय है ।जब तक परस्पर स्नेह सौजन्य ता का वातावरण बना रहता है। तब तक प्राणी ही नहीं प्रकृति भी स्नेह स्वभाव दिखाती हैऔर सहयोग करती है! लेकिन स्थिति बदलते ही प्रतिशोध के लिए कमर कस लेती है।

    हमारी पृथ्वी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है! वह भी कुपित हो उठी है! वह रणचंडी का रूप धारण कर ले! इसके पहले ही मनुष्य को उसे शांत करने की प्रक्रिया अपनानी ही होगी। यह इस बात पर निर्भर हैकि हम उसके साथ किस प्रकार का बर्ताव करते हैं। हमारी संवेदना उसे दुष्ट करेगी तभी तो वह हमें समृद्ध और सुविधा संपन्न बनाएगी। इस आदान-प्रदान को निरंतर चलाए रखने की पहली और अंतिम जिम्मेदारी केवल और केवल मनुष्य पर ही है।

  " विश्वंभरा वसुधानी प्रतिष्ठा हिरण्यवक्षा जगतो निवेशनी ।

विश्वंभर विभ्रति भूमि रग्निमिन्द्र

ऋषभा द्रविणेनो दधातु ।।

 (अर्थात संसार का पालन करने वाली पृथ्वी धनधान्य से परिपूर्ण है। आश्रित जगत की क्षुधा मिटाने वाली पृथ्वी से यह कामना है कि वह हमें समृद्धि से ओतप्रोत करें।)

RELATED NEWS